Thursday, December 3, 2009

कल की तैयारी



मुझे हमेशा लगता रहा है,जहाँ चाह वहीँ राह मगर आज थोडा विश्वाश डगमगाया सा लगा.
अपने ऑफिस के काम से आज जितने लोगों से मिला उनमे एक भी मुझे अपनी बात कहने में मदद करते नहीं दिखे .निराश मुझे होने की ज़रूरत नहीं थी मगर निराशा दूर से मुझे ललचाती रही.एक उम्मीद की किरण तब नज़र आई जब अपने अतीत में गया,लगा की नया क्या हुआ है,पहली बार जब घर से निकला था तब भी तो बहार की दुनिया समझ नहीं आई थी.फिर भी मैंने आगे की तरफ भागना जारी रखा था और एक मुकाम बनता गया. निराशाएं आशाओं की चादर ओढती गयीं अंधकार को प्रकाश में बदलने वाला भी मै हीं था जब भी निराशाएं मन पर हावी हुईं.
आज फिर लगा की हार जीत मन का खेल है मन को डूबने मत दो और हर हार को जीत में बदलते जाओ.
कल फिर आएगा नए उम्मीद के साथ ,एक नयी शुरुआत के लिए तैयार रहना होगा .आज भले मेरा दिन नहीं था मगर कल मेरा होगा अगर आज की गलतियों को मै कल न करूँ तो.

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