आज यही सोच रहा था.. जीवन के कई रंगों को जीने की लत लगी हुई है..क्या भला है क्या बुरा चंचल मन भली भाती जानता है .जन्म से मृत्यु तक अनेकों रंग देखना है.जैसा रंग मिलेगा वैसी कविता का जन्म हो जाएगा मगर यदि मरने के बाद एक कविता लिखने का मौका मिले तो मै क्या लिखूंगा .......इसी सींच में डूब कर जो पंक्तियाँ जन्म ली वो आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ
मेरी म्रत्यु
मेरा कब्र
कब्र के अन्दर
मेरा दर्द
शान्त पडी हुई
ये मट्टी
जिसमे संवेदना
प्रखर
सडा रही है
लाश को मेरे
फिर भी
मौन खडा पत्थर
बतलायेगा उनको
मेरे जीने
का हुनर
सव्छंद बिचारा
अब शांत पड़ा
जीवन का
अंतिम प्रहर
खूब किया हेरा फेरी
अब मेरे हिस्से
मेरा कब्र ...
---अरशद अली--
कुछ शब्दों के जोड़ घटाव से, घटनाओं के कई पड़ाव से, जो भी सिखा इस जीवन से, कुछ शब्द अरशद के मन से...................
Sunday, January 24, 2010
Wednesday, January 20, 2010
मीठी यादें गावं की (Ek baar aur)
शहरी रंग बेरंग से
धूसर मिटटी गावं की
धुप शहर की शूल सरीखी
इच्छा आम के छाव की
हाय-हेलो की चकाचौंध में
स्पर्श बड़ों के पावँ की
अंग्रेजी के कावं-कावं में
मीठी बोली गावं की
शाम की बर्गर,रात की पिज्जा
पानी पूरी कोको कोला
दाल-भात में चोखा-चटनी
खाना मेरे गावं की
रिश्तों के भटकाव में
बचपन कुंठा पाल रहा
चाचा- चाची बुआ दादी
याद कराते गावं की
शहर के चौराहों पर
झूठी शान हजारों के
गावं में देखा है मैंने
कांख में चप्पल पावं की
च हु ओर एक शोर शराबा
तन्हा-तन्हा सारे लोग
एक तन्हाई मिल न पाई
खाख जो छाना गावं की
कुछ शहरी यादों में पाया
खारापन या एक दिखावा
शहरी होकर भूल न पाया
मीठी यादें गावं की
धूसर मिटटी गावं की
धुप शहर की शूल सरीखी
इच्छा आम के छाव की
हाय-हेलो की चकाचौंध में
स्पर्श बड़ों के पावँ की
अंग्रेजी के कावं-कावं में
मीठी बोली गावं की
शाम की बर्गर,रात की पिज्जा
पानी पूरी कोको कोला
दाल-भात में चोखा-चटनी
खाना मेरे गावं की
रिश्तों के भटकाव में
बचपन कुंठा पाल रहा
चाचा- चाची बुआ दादी
याद कराते गावं की
शहर के चौराहों पर
झूठी शान हजारों के
गावं में देखा है मैंने
कांख में चप्पल पावं की
च हु ओर एक शोर शराबा
तन्हा-तन्हा सारे लोग
एक तन्हाई मिल न पाई
खाख जो छाना गावं की
कुछ शहरी यादों में पाया
खारापन या एक दिखावा
शहरी होकर भूल न पाया
मीठी यादें गावं की
Tuesday, January 12, 2010
अपने अकेलापन को दूर करने के लिए आपको कितने लोंगो की आवश्यकता पड़ेगी?
प्रश्न कठिन नहीं परन्तु उत्तर देना आसन भी नहीं ..
गत रात्रि दफ्तर से घर लौटा तो घर की दीवालें प्रश्न कर हीं बैठीं .....
"आज भी अकेले घर आये हो , कहाँ गए वो लोग जो तुम्हरे इर्द-ग्रीद हुआ करते थे? "
अन्न्यास इस प्रश्न पर मै आश्चर्यचकित था.
सोफे में धस कर बैठना मेरे हताशा का प्रतीत था.प्रश्न का उत्तर धुंडने की हिम्मत जुड़ाने के लिए एक कप चाय की आवश्यकता रही थी पर बनाने की हिम्मत जुटाना मुश्किल था.ऐसे में माँ की याद आ जाती है.उन्हें तो सब मालुम रहता है मुझे क्या चाहिए,कितना चाहिए,कब चाहिए ....
शायद मेरा अकेलापन दूर हो जाता यदि माँ यहाँ होती तो..
दिन भर की गहमा-गहमी के बाद घर आना सुकून देता है मगर वो आवाज़ कई दिनों से जाने कहाँ है जो सीधा प्रश्न करती है "क्यों जी ऑफिस में सब ठीक ठाक है ना " उत्तर तो उन्हें भी पता रहता है ---हाँ पापा सब ठीक है मगर उन्हें पूछने की आदत है और मुझे उस प्रश्न को प्रतिदिन सुनने की....
शायद मेरा अकेलापन दूर हो जाता यदि पापा यहाँ होते तो..
आज सब रिक्त है.. घर के अन्दर की ख़ामोशी मन की सतह पर पसर कर धड़कन की शोर को सुनने को मजबूर दिखती है नहीं तो आज छोटी बहन साथ होती तो टी.वी के शोर में हम दोनों की लड़ाइयाँ "कमबख्त रिमोट के लिए"आम नोक-झोक का रूप ले हीं लेती. फिर बड़े भईया की डांट सुनने को मिलता मुई धड़कन की धक् धक् कहाँ महसूस होती ...
शायद मेरा अकेलापन दूर हो जाता यदि भाई बहन यहाँ होते तो..
आज कोई नहीं मेरे साथ मै हूँ और मेरा अकेलापन....ऐसे में
मेरी खिड़की से
लिपटी हुई लततर
अन्न्यास झांकती
मेरे कमरे में
और जान जाती मेरे राज को
जो मै छुपाना चाहता हूँ
कई बार सोंचा
जड़ से हटा दूँ
इस लततर को
जो जाने अनजाने
मेरे एकाकीपन को दूर
करती आई है
हवाओं के स्पर्श से
हिलती हुई ये लततर
आभास कराती
कभी माँ
कभी पापा
कभी भाई बहन
के होने का
और मुझे बिवश करती
अपने और
देखने के लिए
मेरा अकेलापन
दूर हो जाता कुछ पल
फिर होती एक लम्बी ख़ामोशी
और उस ख़ामोशी में
मै ,मेरा अकेलापन
और मेरे खिड़की से लिपटी हुई
ये लततर...
मुझे अपने अकेलापन को दूर करने के लिए मम्मी,पापा,भाई-बहन और मेरे खिड़की से लिपटी हुई लततर की आवश्यकता होती है .....
मगर ये प्रश्न आपके लिए छोड़े जा रहा हूँ "अकेलापन दूर करने के लिए आपको कितने लोंगो की आवश्यकता पड़ेगी??"
---अरशद अली---
तश्वीर गूगल के मदद से
गत रात्रि दफ्तर से घर लौटा तो घर की दीवालें प्रश्न कर हीं बैठीं .....
"आज भी अकेले घर आये हो , कहाँ गए वो लोग जो तुम्हरे इर्द-ग्रीद हुआ करते थे? "
अन्न्यास इस प्रश्न पर मै आश्चर्यचकित था.
सोफे में धस कर बैठना मेरे हताशा का प्रतीत था.प्रश्न का उत्तर धुंडने की हिम्मत जुड़ाने के लिए एक कप चाय की आवश्यकता रही थी पर बनाने की हिम्मत जुटाना मुश्किल था.ऐसे में माँ की याद आ जाती है.उन्हें तो सब मालुम रहता है मुझे क्या चाहिए,कितना चाहिए,कब चाहिए ....
शायद मेरा अकेलापन दूर हो जाता यदि माँ यहाँ होती तो..
दिन भर की गहमा-गहमी के बाद घर आना सुकून देता है मगर वो आवाज़ कई दिनों से जाने कहाँ है जो सीधा प्रश्न करती है "क्यों जी ऑफिस में सब ठीक ठाक है ना " उत्तर तो उन्हें भी पता रहता है ---हाँ पापा सब ठीक है मगर उन्हें पूछने की आदत है और मुझे उस प्रश्न को प्रतिदिन सुनने की....
शायद मेरा अकेलापन दूर हो जाता यदि पापा यहाँ होते तो..
आज सब रिक्त है.. घर के अन्दर की ख़ामोशी मन की सतह पर पसर कर धड़कन की शोर को सुनने को मजबूर दिखती है नहीं तो आज छोटी बहन साथ होती तो टी.वी के शोर में हम दोनों की लड़ाइयाँ "कमबख्त रिमोट के लिए"आम नोक-झोक का रूप ले हीं लेती. फिर बड़े भईया की डांट सुनने को मिलता मुई धड़कन की धक् धक् कहाँ महसूस होती ...
शायद मेरा अकेलापन दूर हो जाता यदि भाई बहन यहाँ होते तो..
आज कोई नहीं मेरे साथ मै हूँ और मेरा अकेलापन....ऐसे में
मेरी खिड़की से
लिपटी हुई लततर
अन्न्यास झांकती
मेरे कमरे में
और जान जाती मेरे राज को
जो मै छुपाना चाहता हूँ
कई बार सोंचा
जड़ से हटा दूँ
इस लततर को
जो जाने अनजाने
मेरे एकाकीपन को दूर
करती आई है
हवाओं के स्पर्श से
हिलती हुई ये लततर
आभास कराती
कभी माँ
कभी पापा
कभी भाई बहन
के होने का
और मुझे बिवश करती
अपने और
देखने के लिए
मेरा अकेलापन
दूर हो जाता कुछ पल
फिर होती एक लम्बी ख़ामोशी
और उस ख़ामोशी में
मै ,मेरा अकेलापन
और मेरे खिड़की से लिपटी हुई
ये लततर...
मुझे अपने अकेलापन को दूर करने के लिए मम्मी,पापा,भाई-बहन और मेरे खिड़की से लिपटी हुई लततर की आवश्यकता होती है .....
मगर ये प्रश्न आपके लिए छोड़े जा रहा हूँ "अकेलापन दूर करने के लिए आपको कितने लोंगो की आवश्यकता पड़ेगी??"
---अरशद अली---
तश्वीर गूगल के मदद से
Saturday, January 9, 2010
कैसा लगेगा यदि आपका जन्मदिन हो और किसी अपने के मरने का समाचार आ जाये??
आप भी सोंच रहे होंगे की मै पगला गया हूँ
मगर जनाब अगर ऐसा हो जाए तो क्या होगा? जरा सोंचिये बिचारिये,ये अलग बात है आज तक आपने ऐसी कल्पना नहीं की है.
परन्तु ये असंभव तो नहीं.भगवान करे आपके साथ ऐसा कभी ना हो मगर भगवान की लीला अपरम्पार है इससे तो किसी को इनकार नहीं.चलिए मै सीधे मुद्दे पर आ जाता हूँ.
एक तरफ मन में ये उत्साह हो की सफलता पूर्वक मैंने अपना एक और बसंत पार किया.लोगो के बीच आज बधाई का पात्र हूँ जन्म दिवस की गहमा गहमी गिफ्टों का मिलना केक मिठाई दोस्त यार यानी मस्ती हीं मस्ती अचानक मोबाईल पर आये किसी कॉल में आपके जन्मदिन की बधाई न होकर ये समाचार हो की नाना जी /दादा जी/फूफा जी /काका जी अथवा कोई भी ऐसा इन्सान जो आपके बहुत करीब हो गुज़र गया तो आपको शायद ऐसा लग सकता है की यमदूत को अभी हीं ऐसा करना था.मगर आप कुछ भी सोंचे जो होना था हो गया अब आपके मन में कैसे कैसे बिचार आयेंगे ये आपके और उस व्यक्ति के सम्बन्ध पर आधारित होगा.या तो आप बहुत कम बिचलित होकर आये परस्थिति से लड़ने को तैयार हो जायेंगे अथवा जन्म एवं मृत्यू के आँख मिचोली में बिचलित होकर जन्मदिवस का उत्सव या मृत्यू का शोक दोनों में से कोई नहीं मना पायेगे.
ऐसी घटनाएँ अपने मानसिक स्थिति को थोडा बिचलित कर जाय तो कुछ नया नहीं है.जबकि ये अटल सत्य है की जन्म जीवन का आरम्भ है तो मृत्यू जीवन का अंत होता है और कोई इसे टाळ नहीं सकता मैंने आज ये प्रश्न इस लिए उठाया की मुझे इस अनुभव से गुजरने का एक मौका मिला है.
ऐसी परिस्थिति मन में भूचाल ला देती है और मन से कुछ पंक्तियाँ मन को बहलाने पता नहीं किस अंतर मन से आ जाते हें.
ऐसी हीं उहापोह में जन्मी कुछ पंक्तियाँ
उठते गिरते
चलते चलते
मंजिल मंजिल करते शोर
एक जन्म फिर जन्मदिवस
फिर हल्ला गुल्ला चारो ओर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर
अच्छे बुरे हर काम में शामिल
जीवन के जंजाल में शामिल
किसी के शादी
किसी की मय्यत
अफरा तफरी चारो ओर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर
पाप पुण्य की
नाप जोख में
कभी उत्सव में
कभी शोक में
निराशाओं के सभी रात में
आशाओं की आती भोर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर .
चलिए अब आपको बतला हीं देता हूँ
पिछले जन्मदिवस पर नानी के नहीं रहने की खबर आने पर घर में रोआ- राहट जैसे शुरू हुआ वैसे हीं जन्म के उत्सव को मै भूल गया .नानी के शारीर को कब्र तक ले जाने में एक हीं बात जेहन में आती रही जो नानी के मय्यत और मेरे जन्म दिन दोनों पर एक साथ सटीक बैठता था
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर
--अरशद अली--
मगर जनाब अगर ऐसा हो जाए तो क्या होगा? जरा सोंचिये बिचारिये,ये अलग बात है आज तक आपने ऐसी कल्पना नहीं की है.
परन्तु ये असंभव तो नहीं.भगवान करे आपके साथ ऐसा कभी ना हो मगर भगवान की लीला अपरम्पार है इससे तो किसी को इनकार नहीं.चलिए मै सीधे मुद्दे पर आ जाता हूँ.
एक तरफ मन में ये उत्साह हो की सफलता पूर्वक मैंने अपना एक और बसंत पार किया.लोगो के बीच आज बधाई का पात्र हूँ जन्म दिवस की गहमा गहमी गिफ्टों का मिलना केक मिठाई दोस्त यार यानी मस्ती हीं मस्ती अचानक मोबाईल पर आये किसी कॉल में आपके जन्मदिन की बधाई न होकर ये समाचार हो की नाना जी /दादा जी/फूफा जी /काका जी अथवा कोई भी ऐसा इन्सान जो आपके बहुत करीब हो गुज़र गया तो आपको शायद ऐसा लग सकता है की यमदूत को अभी हीं ऐसा करना था.मगर आप कुछ भी सोंचे जो होना था हो गया अब आपके मन में कैसे कैसे बिचार आयेंगे ये आपके और उस व्यक्ति के सम्बन्ध पर आधारित होगा.या तो आप बहुत कम बिचलित होकर आये परस्थिति से लड़ने को तैयार हो जायेंगे अथवा जन्म एवं मृत्यू के आँख मिचोली में बिचलित होकर जन्मदिवस का उत्सव या मृत्यू का शोक दोनों में से कोई नहीं मना पायेगे.
ऐसी घटनाएँ अपने मानसिक स्थिति को थोडा बिचलित कर जाय तो कुछ नया नहीं है.जबकि ये अटल सत्य है की जन्म जीवन का आरम्भ है तो मृत्यू जीवन का अंत होता है और कोई इसे टाळ नहीं सकता मैंने आज ये प्रश्न इस लिए उठाया की मुझे इस अनुभव से गुजरने का एक मौका मिला है.
ऐसी परिस्थिति मन में भूचाल ला देती है और मन से कुछ पंक्तियाँ मन को बहलाने पता नहीं किस अंतर मन से आ जाते हें.
ऐसी हीं उहापोह में जन्मी कुछ पंक्तियाँ
उठते गिरते
चलते चलते
मंजिल मंजिल करते शोर
एक जन्म फिर जन्मदिवस
फिर हल्ला गुल्ला चारो ओर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर
अच्छे बुरे हर काम में शामिल
जीवन के जंजाल में शामिल
किसी के शादी
किसी की मय्यत
अफरा तफरी चारो ओर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर
पाप पुण्य की
नाप जोख में
कभी उत्सव में
कभी शोक में
निराशाओं के सभी रात में
आशाओं की आती भोर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर .
चलिए अब आपको बतला हीं देता हूँ
पिछले जन्मदिवस पर नानी के नहीं रहने की खबर आने पर घर में रोआ- राहट जैसे शुरू हुआ वैसे हीं जन्म के उत्सव को मै भूल गया .नानी के शारीर को कब्र तक ले जाने में एक हीं बात जेहन में आती रही जो नानी के मय्यत और मेरे जन्म दिन दोनों पर एक साथ सटीक बैठता था
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर
--अरशद अली--
Tuesday, January 5, 2010
नुक्कड़
सभ्यताएं बदलते हुए कर्मवत जाने किस शुन्य में ले जाएगी प्रश्न काँटों का ताज बन प्रतेक चिन्तक के मस्तक पर चुभती चली जाएगी
प्रतेक दिन सजता नुक्कड़ उजाड़ होता जायेगा प्रतेक दिन उजड़े नुक्कड़ को काल पुनः सजाएगी.
नुक्कड़
लोगों की भीड़
संस्कृतियों का जमाव
मन बहलाते लोग
बहलते हीं छोड़ जाते
नुक्कड़ को अकेला
फिर लगता बिराना
कब्रस्तान सा
वही नुक्कड़
जहां चाय वाला
रोज़ आवाज़ लगता
कई बार अकबर को
ख़ाली गिलास लाने
और चाय पहुचने के लिए
और अकबर भी
मशीन सा चलता
बारह घंटों तक
उसी नुक्कड़ पर
जहां सन्नाटों को तोडती
बरबस कुत्तों की आवाज़
रात भर
--अरशद अली--
प्रतेक दिन सजता नुक्कड़ उजाड़ होता जायेगा प्रतेक दिन उजड़े नुक्कड़ को काल पुनः सजाएगी.
नुक्कड़
लोगों की भीड़
संस्कृतियों का जमाव
मन बहलाते लोग
बहलते हीं छोड़ जाते
नुक्कड़ को अकेला
फिर लगता बिराना
कब्रस्तान सा
वही नुक्कड़
जहां चाय वाला
रोज़ आवाज़ लगता
कई बार अकबर को
ख़ाली गिलास लाने
और चाय पहुचने के लिए
और अकबर भी
मशीन सा चलता
बारह घंटों तक
उसी नुक्कड़ पर
जहां सन्नाटों को तोडती
बरबस कुत्तों की आवाज़
रात भर
--अरशद अली--
Friday, January 1, 2010
एक जनवरी,वर्ष का पहला दिन (एक चिंतन)
आज मोबाईल की हालत ठीक नहीं बधाइयों का ताता लगा हुआ है.चन्द्र ग्रहण भी चर्चा में है.झारखण्ड में सोरेन सरकार अलग उत्सव मना रही घर से कुछ दूर पर लडकें माइक पर गाना बजा रहे हें.दूध वाले ने दूध नहीं भेजवा कर चाय की आफत कर रखी है.
टेलीबिजन रात से रंगारंग बना हुआ है.न्यूज़ पर पता चला की गत रात्रि नववर्ष के उत्सव में एक ठुमका पर बंगाली बाला को दो करोड़ मिल गए.घूम घाम कर ब्लॉग की दुनिया में आया तो पुनः नववर्ष की बाधायों से भींगने लगा.मेरी भी इच्छा हुई की वर्ष के प्रथम दिन जो भी अनुबव किया लिख दूँ .
चौराहे के बगल के झुग्गी में
बड़ी शोर था
जहाँ कल तक सन्नाटा
पसर रहा था
जश्न था,धूम था,
नववर्ष के उत्सव का
असर रहा था
मंदिर के पास के
ए.टी.एम में कतार लगी थी
एक छोटी भिखमंगी
खाने के लिए
पैर छू छू कर
एक रूपया मांग रही थी
राजनैतिक स्थिरता में
अवसर निचोड़ा जा रहा था
कारखाने के द्वार पर
बिस्थापितों को नौकरी
के नाम पर
एकता के रस्सी में
जोड़ा जा रहा था
मनचलों की भीड़
नाचते गाते
सड़क के बीचों -बीच
जा रही थी
नयी पीढ़ी ज़बरदस्त
पिकनिक मना रही थी
अखबार नववर्ष की
शुभकामनाओं से
पटा पड़ा था
कहीं मुख्यमंतरी
कहीं राज्यपाल का
नववर्ष सन्देश
गढ़ा था
घर के सामने
रिक्शे वाले
नववर्ष की शुभकामनायें
बाँट रहे थे
संभवतः कल रात से
खाने पिने के
उनके ठाट रहे थे
घर की बाई
वर्ष के प्रथम दिवस पर
काम पर नहीं आने की
खबर भेजवाई थी
बहुत सज-धज कर
बच्चों के साथ
थोड़ी देर के लिए
बख्शीस लेने आई थी
सोंचा था आज का दिन
कुछ अलग होगा
मगर वही हुआ
जो होता आया है
दसक का पहला दिन
बीते बर्षों के
नियमों पर हीं बिताया है.
-अरशद अली-
टेलीबिजन रात से रंगारंग बना हुआ है.न्यूज़ पर पता चला की गत रात्रि नववर्ष के उत्सव में एक ठुमका पर बंगाली बाला को दो करोड़ मिल गए.घूम घाम कर ब्लॉग की दुनिया में आया तो पुनः नववर्ष की बाधायों से भींगने लगा.मेरी भी इच्छा हुई की वर्ष के प्रथम दिन जो भी अनुबव किया लिख दूँ .
चौराहे के बगल के झुग्गी में
बड़ी शोर था
जहाँ कल तक सन्नाटा
पसर रहा था
जश्न था,धूम था,
नववर्ष के उत्सव का
असर रहा था
मंदिर के पास के
ए.टी.एम में कतार लगी थी
एक छोटी भिखमंगी
खाने के लिए
पैर छू छू कर
एक रूपया मांग रही थी
राजनैतिक स्थिरता में
अवसर निचोड़ा जा रहा था
कारखाने के द्वार पर
बिस्थापितों को नौकरी
के नाम पर
एकता के रस्सी में
जोड़ा जा रहा था
मनचलों की भीड़
नाचते गाते
सड़क के बीचों -बीच
जा रही थी
नयी पीढ़ी ज़बरदस्त
पिकनिक मना रही थी
अखबार नववर्ष की
शुभकामनाओं से
पटा पड़ा था
कहीं मुख्यमंतरी
कहीं राज्यपाल का
नववर्ष सन्देश
गढ़ा था
घर के सामने
रिक्शे वाले
नववर्ष की शुभकामनायें
बाँट रहे थे
संभवतः कल रात से
खाने पिने के
उनके ठाट रहे थे
घर की बाई
वर्ष के प्रथम दिवस पर
काम पर नहीं आने की
खबर भेजवाई थी
बहुत सज-धज कर
बच्चों के साथ
थोड़ी देर के लिए
बख्शीस लेने आई थी
सोंचा था आज का दिन
कुछ अलग होगा
मगर वही हुआ
जो होता आया है
दसक का पहला दिन
बीते बर्षों के
नियमों पर हीं बिताया है.
-अरशद अली-
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