Tuesday, January 5, 2010

नुक्कड़

सभ्यताएं बदलते हुए कर्मवत जाने किस शुन्य में ले जाएगी प्रश्न काँटों का ताज बन प्रतेक चिन्तक के मस्तक पर चुभती चली जाएगी
प्रतेक दिन सजता नुक्कड़ उजाड़ होता जायेगा प्रतेक दिन उजड़े नुक्कड़ को काल पुनः सजाएगी.

नुक्कड़
लोगों की भीड़
संस्कृतियों का जमाव
मन बहलाते लोग
बहलते हीं छोड़ जाते
नुक्कड़ को अकेला
फिर लगता बिराना
कब्रस्तान सा
वही नुक्कड़
जहां चाय वाला
रोज़ आवाज़ लगता
कई बार अकबर को
ख़ाली गिलास लाने
और चाय पहुचने के लिए
और अकबर भी
मशीन सा चलता
बारह घंटों तक
उसी नुक्कड़ पर
जहां सन्नाटों को तोडती
बरबस कुत्तों की आवाज़
रात भर


--अरशद अली--

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